एक समय की बात है, जब धरती पर एक नहीं, बल्कि आठ सूरज चमका करते थे। धरती बेहद गर्म थी और लगभग सब कुछ जलकर राख हो गया था। समुद्र और झीलें लगभग सूख चुकी थीं, और सूखी पड़ी धरती बंजर और लगभग निर्जीव हो गई थी।
इंसान और जानवर दोनों भूख से बेहाल थे, और भयानक गर्मी के कारण पूरी धरती विनाश के कगार पर थी।
स्थिति वाकई बेहद चिंताजनक थी, इसलिए उस जगह के लोग जिसे आज हम एशिया के नाम से जानते हैं, ने तय किया कि उन्हें इसके लिए कुछ करना होगा। आठ सूरज हमारी नन्ही-सी धरती के लिए बहुत ज़्यादा थे!
उन्होंने बहुत देर तक दिमाग़ लगाया, यह सोचते हुए कि इन भयानक हालातों को बदलने का क्या उपाय हो सकता है। आख़िरकार उन्होंने तय किया कि एक सूरज ही काफ़ी होगा और बाक़ी सात सूरजों को आकाश से हटाना पड़ेगा।
वे बहुत समय तक इस विषय पर विचार-विमर्श करते रहे कि क्या करें, कैसे करें, जब उनमें से एक ने आगे आकर एक सुझाव दिया कि वे गाँव के सबसे कुशल तीरंदाज को बाकी के सात सुरजों को मार गिराने को कह सकते हैं। तीरंदाज़ यह ज़िम्मेदारी अपने ऊपर दिए जाने से बहुत गर्वित महसूस करने लगा और काम को अंजाम देने की तैयारी में जुट गया।
उसने अपने सबसे नुकीले सात तीरों को तैयार किया और सबसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ से उसने अपना पहला तीर एक सूरज पर चलाया। जब उस सूरज ने देखा कि कोई उसे तीर से मारने की कोशिश कर रहा है, तो वह तुरंत अपने स्थान से हट कर दूर चला गया जहाँ से वह धरती को कोई क्षति नहीं पहुँचा सकता था।
फिर तीरंदाज़ ने बाकी के तीरों से बचे हुए छः सुरजों को भी भगा दिया ताकि वे धरती को नुक़सान ना…