Tereza Sebesta
एक नदी
मिलिए एक दोस्ताना नदी से, सुनिए इसकी कहानी और इसके साथ गाँवों-खेतों से होते हुए इसके सफ़र पर चलिए। यह शांत और सुंदर कहानी बच्चों को प्रकृति के जल चक्र के बारे में सिखाने के लिए एकदम सही सोने के समय के लिए कहानी है।
एक बार की बात है, एक हरे-भरे मैदान में, बलूत के पेड़ों के पास चींटियों का एक बड़ा घर था जहाँ सभी
“अरे चींटियों, तुम क्या उठा रही हो?”
“हम सर्दियों के लिए खाना इकट्ठा कर रही हैं। जब सर्दी का मौसम आएगा और बर्फ गिरेगी तो यह सब ढक जाएगा। सब कुछ जम जाएगा और तब कुछ भी खाने को नहीं मिलेगा।” उनमें से एक चींटी ने समझाया।
टिड्डा ज़ोर से
“अरे चींटियों! आज का दिन कितना
लेकिन चींटियों ने उसकी बात नहीं मानी। वे चुपचाप अपने काम में लगी रहीं और जो उन्हें मिलता गया जमा करती रहीं ताकि सर्दियों में उनके पास सब कुछ हो। उन्होंने बड़ी-बड़ी पत्तियाँ और छोटे-छोटे तिनके जमा किए ताकि वो आने वाली सर्दियों के लिए चींटियों के बाड़े को मज़बूत बना सकें।
वे गहरे जंगल से मशरूम, ब्लूबेरी और अन्य फल भी इकट्ठा कर रहे थे ताकि पूरे साल कुछ खाने को मिल सके। मूर्ख टिड्डा अब भी मैदान में इधर-उधर उछलता
"आओ, मेरे साथ खेलो!" वह पुकारता। लेकिन मेहनती चींटियाँ बस अपने छोटे-छोटे सिर हिलाती…