एक शाम, काली चींटियों का एक झुंड अपने घर, अपनी बांबी की तरफ़ जा रहा था। पूरे दिन तिनके और पाइन की सूइयाँ लाते-लेजाते उनका दिन काफ़ी व्यस्त बीता था, और अब वे बस अपने बिस्तर में घुस एक अच्छी नींद लेने के लिए बेहद उत्सुक थे।
मगर तभी, अचानक, उनमें से एक को पुराने बलूत के पेड़ के नीचे एक बड़ी, रसीली रसभरी दिखाई दी। उसने तुरंत अपने काफ़ी सारे दोस्तों को मनाया कि वो उसे ले कर आने उसके साथ चलें। और रानी चींटी ऐसा तोहफा लाने के लिए उन्हें ज़रूर धन्यवाद देंगी!
मगर जैसे ही वे रसभरी के चारों और खड़े हुए, उन्हें नन्हे कदमों की पेड़ के तने से नीचे मार्च करते हुए आने की आवाज़ सुनाई दी। लाल चींटियों की फौज तेज़ी से चलती उनके पास आ रही थी!
अब ऐसा है, कि सब जानते हैं कि काली चींटियों और लाल चींटियों में दोस्ती नहीं है। काली चींटियाँ ईमानदारी से काम करती हैं, बाँबियाँ बनाती हैं और अपनी रानी को खिलाती हैं, जबकि लाल चींटियों को जंगल का डाकू माना जाता है।
यूँ तो काली चींटियाँ शांत स्वभाव की प्राणी हैं, मगर वह इस रसभरी के लिए बहादुरी से लड़ने लगे । लाल चींटियाँ गिनती में ज़्यादा थीं, मगर क्योंकि वे एक टीम की तरह काम नहीं कर रही थीं, उनकी ताकत कम पड़ने लगी। काली चींटियाँ लड़ाई जीत गईं।
उन्होंने तुरंत किसी तरह से रसभरी को अपने कंधों पर उठाया और इससे पहले की डाकू उनपर हमला करते, वहाँ से भाग गईं। एक बार जब वे अपनी बांबी पर पहुँच गईं, तो रानी के लिए यह तोहफ़ा लाने के लिए उन्हें पुरस्कार मिला। रात को अच्छा खाना खाकर, आखिरकार वो सोने जा सके ।
मगर उस रात, जंगल में एक तेज़ तूफ़ान आया। हवा पेड़ों के बीच से…