कमरे में एकदम अंधेरा था। अचानक कमरे का दरवाजा चरमराने से खिड़की के पास खड़ा एक लड़का कांप उठा।
“बेटा, तुम्हें बहुत पहले ही सो जाना चाहिए था,” उसकी मां ने कुछ हद तक फटकार भरी आवाज में कहा। “आधी रात होने वाली है और कल स्कूल भी जाना है।”
स्टीफन ने अनिच्छा से अपने हाथ में पकड़ी हुई घर में बनाई हुई दूरबीन और अपना नोटपैड नीचे रख दिया। “क्या ये लोग यह नहीं समझते कि दिन के उजाले में तारों को नहीं देखा जा सकता?” उसने खुद से पूछा। थोड़ी नाराजगी से उसने अपने सिर पर रजाई डाल ली। हालांकि, वह अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां कुछ गलत नहीं कह रही हैं। कल अपनी पसंदीदा गणित की क्लास के दौरान जम्हाई लेना शर्म की बात होगी।
अंतरिक्ष और गणित यही वे दो चीजें थीं जिन्हें स्टीफन सबसे ज्यादा पसंद करता था। बचपन से ही उसे संख्याओं से प्यार था। वह उनके बीच बहुत सुकून महसूस करता था। हालांकि उसके पिता चाहते थे कि उनका बेटा उनकी तरह ही डॉक्टर बने, लेकिन स्टीफ़न हमेशा इस बात को हंसी में उड़ा देता था। मानव शरीर उसे उबाऊ लगता था। लेकिन अंतरिक्ष, दूरी, अनंत... इनकी तो बात ही अलग थी।
सुबह, स्टीफन को उठने का मन नहीं हुआ। उसे फिर से अपने दाहिने पैर में झनझनाहट महसूस हुई। कभी-कभी ऐसा तब होता था जब वह ठीक से सो नहीं पाता था। लेकिन वह हमेशा उसे हिलाने में कामयाब हो जाता था। उसने पैर को थोड़ा खींचा और स्कूल के लिए निकल गया।
जब क्लास समाप्त हुई, तो गणितज्ञ ने स्टीफन और उसके दो दोस्तों की ओर इशारा किया: "तुम, तुम, और तुम। आखिरी क्लास खतम होने के बाद मेरे ऑफिस में आना," उन्होंने बस यही कहा। और वह क्लास से बाहर चले गए।…