लगभग दो सौ साल पहले, फ्रांस के एक छोटे से गाँव में लुई नाम का एक लड़का रहता था। उस समय, जो इतना भी पहले नहीं था, न तो कारें थीं और न ही बिजली के बल्ब।
लुई बहुत जिज्ञासु था। जो चीजें उसे पसंद थीं, वे उसकी उम्र के बाकी बच्चों से काफी अलग थीं। जहाँ उसके दोस्त जंगल में दौड़ते-भागते, पेड़ों पर चढ़ते और बाहर खेलते, वहीं लुई मिट्टी के तेल के दीए की लौ को घूरता रहता था। उसकी आँखें हैरानी से खुली होतीं, जब वह दीवार पर पड़ती परछाइयों को देखता — जो उसे नाचते हुए जानवरों जैसी लगती थीं।
सर्दियों में, जब उसके दोस्त जमी हुई नदी पर आइस स्केटिंग कर रहे होते, लुई पंख वाली कलम को स्याही में डुबोकर लिखने और चित्र बनाने में व्यस्त रहता।
एक दिन, एक घुमंतू थिएटर दल उनके शहर आया और लुई ने उनका नाटक देखा। नाटक से ज़्यादा उसे मंच की पेंटिंग्स ने आकर्षित किया।
नाटक खत्म होते ही वह घर दौड़ता हुआ गया, और गोदाम में रखे पुराने कपड़ों के टुकड़े निकाल लाया। उसने उन पर वही चित्र बनाए जो उसने थिएटर में देखे थे। इसके बाद हर शाम वह अपने कठपुतली शो की प्रैक्टिस करता, जिनमें वे चित्र पर्दे की तरह काम आते। लेकिन ये शो वह एक कोने में करता जहाँ कोई उसे देख नहीं सकता था। वह बहुत विनम्र और शांत स्वभाव का लड़का था।
जब लुई बड़ा हुआ, तो उसे ज़रा भी संदेह नहीं था कि उसे जीवन में क्या करना है। उसने अपने माता-पिता से विदा ली और सीधा पेरिस चला गया, ताकि वह थिएटर के लिए दृश्यचित्र और मंच की सजावट बनाना सीख सके।
ज़्यादा समय नहीं बीता था कि उसके गुरु को उसकी प्रतिभा नज़र आने लगी। जैसे ही लुई ने कला की बुनियादी बातें सीखीं, वह…