एक बार एक बूढ़ा बढ़ई था जो लकड़ी के खिलौने बनाकर अपना जीवन यापन करता था। वह सब तरह की चीज़ें बनाता, जैसे हाथी, गुड़िया और छोटे-छोटे सिपाही। उसका नाम गेप्पेटो था और मीलों-मीलों तक उसके जैसा और कोई कारीगर नहीं था।
मगर वह अकेला था, क्योंकि उसके पास कोई अपना नहीं था सिवाय उसके नारंगी रंग के पालतू बिल्ले, फ़िगारो के, जो उसका सबसे अच्छा दोस्त था, हाँ पर वह इंसान नहीं था। बूढ़े गेप्पेटो को अपने बुढ़ापे में केवल एक ही दुख था: कि उसका कोई बेटा या बेटी नहीं थी जो उसको इस उम्र में सुख दे सके।
एक बार जंगल से गुज़रते हुए, उसे लकड़ी का एक सुंदर टुकड़ा मिला, और जैसे ही उसकी नज़र उस लकड़ी पर पड़ी, उसने ठान लिया कि वह इससे एक कमाल की कठपुतली बनाएगा। उसने उसी दिन लकड़ी को काटा और काम पर लग गया।
जब उसका काम ख़त्म हुआ तो वह बहुत ख़ुश था। कठपुतली बिल्कुल एक असली इंसान जैसा दिखता था! वह अपने नन्हे हाथ-पैर हिला सकता था, और सुंदर कपड़े पहने हुए था। गेप्पेटो अपने काम से बहुत खुश था और उसके पास बैठा फ़िगारो, ख़ुशी से अपनी पूँछ हिला रहा था और जोश में म्याऊँ-म्याऊँ कर रहा था।
“मैं तुम्हें पिनोचियो बुलाऊँगा,” गेप्पेटो ने ख़ुशी से कहा और उस लकड़ी के लड़के को अपने बिस्तर के सिराहने एक छोटी सी मेज़ पर रख दिया।
क्योंकि बहुत देर हो चुकी थी, गेप्पेटो सोने की तैयारी करने लगा। उसने खिड़की से बाहर देखा तो बाहर केवल अंधेरा था।
“इस सुंदर आकाश को देखो, फ़िगारो।“ गेप्पेटो ने अपने बिल्ले को उठाते हुए कहा और दोनों तारों भरे रात को ताकने लगा। बिल्ला धीरे-धीरे संतुष्टि में आवाज़ें निकालता रहा।
“बहुत दुख की बात है, सचमुच, कि मुझे कभी एक बेटे का सुख…