बहुत वक़्त पहले की बात है, दूर एक राज्य में एक बेहद ख़ूबसूरत महल था। वो महल गुलाबी पत्थरों और हल्के भूरे शीशों से बना हुआ था। उसी महल में एक राजा और रानी रहते थे। उनके पास सब कुछ था, बस एक ही चीज़ की कमी थी: एक संतान।
हर सुबह वे इसी उम्मीद में उठते थे कि शायद आज उनका सपना पूरा हो जाएगा, कि उनके घर एक नन्हा फ़रिश्ता आएगा, जिसे वो दिल से प्यार करेंगे।
एक दिन रानी उदास मन से बाग़ीचे में टहल रही थीं और शाही मेंढकों की टर्र-टर्र सुन रही थीं, की वो चलते-चलते झील के पास पहुँच गईं।
अचानक, झील के एक मेंढक ने टर्राकर कहा, "तुम्हारी ख़्वाहिश पूरी होगी। एक साल के अंदर तुम्हारे यहाँ एक प्यारी सी बेटी होगी।"
और ठीक एक साल बाद, रानी को एक नन्ही सी बेटी हुई। उन्होंने उसका नाम मैरिएन रखा। राजा की तो ख़ुशी का जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था। अपनी बेटी के जन्म की ख़ुशी में उसने एक बड़ी सी दावत रखी, ताकि पूरे राज्य के लोगों के साथ अपनी ख़ुशी बाँट सके।
जैसा कि रिवाज था, उस दावत में परियों को ज़रूर बुलाना होता था, क्योंकि उन्हीं का काम था राजकुमारी के भविष्य का फ़ैसला करना। कुल तेरह परियाँ थीं, लेकिन राजा तो ख़ुशी में इतना खो गया था कि एक बड़ी गलती कर बैठा। उसने सिर्फ़ बारह परियों को बुलाया।
जश्न वाले दिन पूरे राज्य में ख़ुशियों की लहर थी। हर तरफ़ हँसी-ठिठोली हो रही थी, यहाँ तक कि महल के नौकर भी गलियारों में सीटी बजाते फिर रहे थे।
दावत में इतना सारा लज़ीज़ खाना था कि मेज़ें उसके वज़न से चरमरा रही थीं। सारे मेहमानों ने दिल भरकर खाया, नाचे और ख़ुशियाँ मनाईं।
आधी रात को परियाँ राजकुमारी मैरिएन के…