मठ के स्कूल की कक्षा अभी-अभी खत्म हुई थी, लेकिन एक लड़का था जिसे कोई जल्दी नहीं थी। बाकी सभी छात्र तेजी से बाहर निकल गए, लेकिन योहान को जाने का मन नहीं था।
“तुम अभी भी यहाँ क्या कर रहे हो?” शिक्षक, संत माइकल ने थोड़ा झुंझलाते हुए पूछा।
योहान ने इधर-उधर देखा। जब उसे यकीन हो गया कि वो कमरे में सिर्फ शिक्षक के साथ अकेला है, तो उसने धीरे से पूछा: “ब्रदर माइकल, अगर हो सके तो… क्या मैं मठ का पुस्तकालय देख सकता हूँ?”
संत ने नहीं में सिर हिलाया पर वो थोड़े हैरान थे। ये कोई आम अनुरोध नहीं था। बहुत कम बच्चे पढ़ने में रुचि लेते थे। लेकिन ब्रदर माइकल जानते थे कि बच्चों की जिज्ञासा को बढ़ावा देना चाहिए। आखिर, उन्होंने सोचा, क्यों न बच्चे को कुछ देर किताबें देखने दी जाएं?
“ठीक है,” संत ने आखिरकार कहा। “लेकिन सिर्फ एक झलक भर! मेरे साथ आओ,” उन्होंने लड़के से कहा और लंबे गलियारे से होते हुए पुस्तकालय की ओर चल पड़े।
चलते-चलते वह योहान को समझाते जा रहे थे: “तुम्हें बहुत सावधानी से चलना होगा। मठ में हमारे पास कुछ बहुत ही दुर्लभ और अनमोल किताबें हैं। दुनिया में इन जैसी किताबें कहीं और नहीं मिलेंगी। किसी भी हाल में इन्हें नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए!” उन्होंने भारी चाबी के गुच्छे में से पुस्तकालय की चाबी खोजते हुए बताया।
योहान ने ब्रदर माइकल की हर बात को खुशी-खुशी मान लिया, बस इसलिए कि वो उन अद्भुत किताबों को देख सके। उसे पुरानी घटनाओं की कहानियाँ और चित्रों वाली बाइबिल की कथाएँ बहुत पसंद थीं। वो भाग्यशाली था कि उसके पिता, जो एक अमीर सुनार थे, ने उसे मठ के विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा था।
मठ में योहान को सिर्फ पढ़ना ही नहीं सिखाया गया, बल्कि…