समुद्र के पास एक छोटा-सा गांव था। वहाँ हमेशा रोज़मर्रा की चहल-पहल के बजाय एक मनहूस खामोशी छाई रहती थी। एक उदास औरत चुपचाप थके हुए मछुआरों को समुद्रतट से आते हुए देखती।
जैसे कल, वो ख़ाली हाथ लौट रहे थे। जैसा कि उससे पिछले दिन था। यहाँ तक कि शिकारी भी दुखी थे। कोई भी एक छोटी मछली तक लेकर नहीं आया था।
गांववालों के लिए, यह तबाही से कम नहीं था। समुद्र से मिलने वाले तोहफे ही उनका रोज़ का खाना थे। मछलियों के अलावा वे सील, समुद्री घोड़े और व्हेल मछली का भी शिकार करते थे, मगर बहुत समय से यह गायब हो चुके थे। ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र अचानक सभी जीवन से खाली हो गया हो।
कोई नहीं जानता था क्या करना चाहिए। उन्हें कहाँ से कुछ खाना मिलेगा? बाहर लंबे समय से कड़ाके की ठंड का शासन था। आदमी चुपचाप बैठे अपने खाली जालों की मरम्मत कर रहे थे। माँएं लाचार थीं: अब वह अपने बच्चों को किस चीज़ का गर्म सूप बना के पीला सकती थीं? बच्चे भी बस गाँव में इधर-उधर घूम रहे थे। भूखे पेट उनका खेल में भी मन नहीं लग रहा था।
सिर्फ़ एक ऐसी माँ थी जो शांत बैठकर सबका दुख नहीं देखना चाहती थी। इसलिए उसने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और उसे समुद्र के पास ले गई।
जब वे वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने उससे कहा: “मेरे बच्चे, जाकर समुद्र से पूछो आख़िर बात क्या है। पूछो की सभी मछलियाँ और सील कहाँ चले गए हैं।“
बेटे ने हैरानी से अपने माँ की तरफ देखा। “समुद्र से पूछूँ?” उसने घबराकर पूछा।
उसकी माँ ने जवाब दिया: “तुम्हारे दादा और परदादा दोनों शमन थे। माना जाता है कि उनमें जादुई शक्तियां थीं और वो समुद्र से बात कर सकते थे। आज…