इस पुराने बगीचे में एक दूसरे के साथ-साथ खड़े कई तरह के फल के पेड़ उगे हुए थे: दो खुबानी के, एक चेरी और एक आड़ू का। साथ ही कई सेब के पेड़ भी थे और काली चेरी का एक छोटा पेड़ भी था। मौसम ने करवट ली और वसंत जल्दी ही गर्मियों में बदल गया, और खुशनुमा आवाजें वातावरण में भर गईं, जिसमें पेड़ों की फुनगियों के नीचे खेलते और लगातार बोलते बच्चों की आवाजें भी शामिल थीं। सूरज ने उनकी नाक को रूखा बनाने की पूरी कोशिश की, और जब वह ऐसा करने में कामयाब हो गया, तो वहां चकत्ते से पड़ गए!
सभी फलों के पेड़ फल-फूल रहे थे। उन पर ताजे फूल और बिल्कुल नई, कोमल पत्तियां लहरा रही थीं। काली चेरी का पेड़ ही एकमात्र ऐसा था जिस पर सफेद फूल थे। दरअसल, चेरी का पेड़ हमेशा सबसे आखिर में खिलता है। इस वजह से, काली चेरी अपने दोस्तों से ईर्ष्या करती थी, क्योंकि वे वसंत की शुरुआत होने से पहले ही खिलना शुरू हो गए थे, जबकि चेरी के पेड़ की शाखाओं पर अभी तक एक भी पत्ता नहीं आया था। लेकिन कुछ हफ्ते बाद, सब कुछ बदल गया। चेरी का पेड़ सबसे प्यारे फूलों से खिल उठा। उस पर इतने सारे फूल आए थे कि पेड़ एक रोएंदार फर के कोट जैसा लग रहा था। उसके फूलों का स्वाद लेने और उसकी सुंदरता की प्रशंसा करने के लिए, सभी भौंरे दूर-दूर से उसके पास उड़कर आए ।
“आप बहुत खूबसूरत हैं, लेडी चेरी,” मिस्टर भौंरा भिनभिनाया।
“हमने बहुत समय से ऐसे मनभावन फूल नहीं देखे हैं!” मधुमक्खी बहनों ने चहकते हुए कहा।
गर्वित चेरी के पेड़ ने अपनी शाखाएं आकाश की ओर फैला दीं- उसने यह सब इतनी खूबसूरती से किया ताकि एक भी सफेद फूल जमीन पर न गिरे।…