लूसी ने अपनी दोनों चोटियों को रबरबैंड से कसकर बांध लिया। उसने अपने अगल-बगल में देखा। उसके दोनों तरफ कई बच्चे थे, जो रेस शुरू करने के लिए तैयार खड़े थे। रेस कभी भी शुरू हो सकती थी।
रेस के सभी भागियों ने अपने हेल्मेट, कपड़ों, साइकिल के फ्रेम और चेन की आखिरी बार जांच की। दर्शक, खासकर सबके मम्मी-पापा, मुस्कुरा कर अपने बच्चों को देख हाथ हिला रहे थे और अपने छोटे-छोटे एथलीटों की तस्वीरें खींच रहे थे। रेफरी ने एक आखरी बार निर्देश ज़ोर से सबको सुनाए।
लूसी को लग रहा था मानो सबकी निगाहें उसी पर टिकी हैं। लेकिन ऐसा नहीं था कि उसे इससे कोई फर्क पड़ता हो। उसने अपने हेल्मेट की पट्टी कसी, अपना धूप का चश्मा और दस्ताने पहने, और दौड़ के लिए तैयार हो गई।
रेस शुरू करने की बंदूक की आवाज़ हुई। सभी तुरंत तेज़ रफ्तार में निकल पड़े। उन्हें एक लंबा चक्कर लगाना था। रास्ता पूरे शहर में से होकर निकलता था, और थोड़ा आगे खेतों तक भी जाता था। हर प्रतियोगी को दो चक्कर लगाने थे: कुल नौ किलोमीटर।
पहली चार गलियों को पार करते ही, लूसी से तीन साइकिल सवार आगे निकल चुके थे, और अब दो और उसे पार कर गए।
वह पूरी ताकत से तेज़ी से आगे बढ़ रही थी — जैसे कोई तूफान उड़ रहा हो। यह एहसास उसे बहुत अच्छा लग रहा था। पर यह उसकी पहली दौड़ थी, इसलिए उसे नहीं पता था कि इसका नतीजा कैसा निकलने वाला है।
वह चाहे जितनी भी कोशिश कर रही थी, पर एक-एक कर और भी खिलाड़ी उससे आगे निकलते जा रहे थे। उफ्फ, मैं सबसे पीछे रह जाऊँगी! उसने मन ही मन सोचा और थोड़ा उदास हो गई। लूसी अभी पहले मोड़ पर ही पहुँची थी और जितना…