उत्तर दिशा से एक ज़बरदस्त हवा चल रही थी। जो भी उसकी राह में आता, खिड़कियाँ बंद करके छुप जाता। वो हवा इतनी तेज़ और ठंडी थी कि अगर चाहती, तो पेड़ों को जड़ से उखाड़ सकती थी या पूरे देश को बर्फ़ की चादर से ढक सकती थी — वो भी बस चंद पलों में!
समुद्र के ऊपर, वो ऐसी ऊँची लहरें बना देती कि मछली पकड़ने वाली कोई भी नाव उनसे टकरा कर डूब जाती। ऐसे दिनों में मछुआरे किनारे छोड़ने की हिम्मत भी नहीं करते थे।
यहाँ तक कि परिव्राजक पक्षी भी रास्ता बदल लेते थे, क्योंकि इतनी ताक़तवर हवा के ख़िलाफ़ उड़ना उनके पंखों को थका देता था।
एक दिन, ज़मीन से बहुत ऊँचाई पर उड़ते हुए, उत्तरी हवाओं की मुलाक़ात सूरज से हो गई। हवा ने चमकते हुए सूरज का मज़ाक उड़ाते हुए घमंड से कहा, "बेहतर होगा कि तुम मेरे रास्ते से हट जाओ, वरना मैं तुम्हें इतनी दूर उड़ा दूँगा कि तुम इस ज़मीन पर फिर कभी रोशनी नहीं डाल पाओगे!" उसने धमकाया।
लेकिन सूरज को हवा की ये धमकी बिल्कुल पसंद नहीं आई। वह हवा को ख़ुद से ऐसे बात नहीं करने दे सकता था क्योंकि वो भी कोई कम ताक़तवर नहीं था। बस फिर क्या था, दोनों आपस में झगड़ने लगे कि ज़्यादा ताक़तवर कौन है। दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। तभी, नीचे ज़मीन पर, धूल भरी राह पर चलते हुए एक तीर्थयात्री दिखाई दिया जो इतनी ऊँचाई से एक चींटी जितना छोटा नज़र आ रहा था।
हवा तो तुरंत एक धूल भरी आँधी चलाकर अपनी ताक़त दिखाना चाहती थी, लेकिन सूरज ने उसे रोक लिया। बल्कि उन्होंने एक शर्त लगाई: जो पहले उस आदमी का कोट उतरवा देगा, वही होगा ज़्यादा ताक़तवर।
तो पहले हवा ने शुरू किया अपना खेल। वो तीर्थयात्री के…