एक घने, गहरे जंगल में एक बहुत बूढ़ा बलूत का पेड़ मज़बूती से, अपनी पूरी ऊँचाई में तन कर खड़ा था। कोई नहीं जानता था वह कब से है, मगर उसने मनुष्यों की कई पीढ़ियों को देखा था।
यह बड़ा पेड़ बहुत फैला हुआ था, जिससे की बारिश की अधिकतर बूँदें इसकी बड़ी-बड़ी पत्तियों पर ही गिरतीं थीं। इस तरह यह पोधों और जानवरों को अपने नीचे आश्रय दे पाता था। उसकी टहनियाँ मानो खुले हुए हाथ थीं, और वह प्यार से जंगल के प्राणियों का साथ देती थीं।
कुछ दिन पहले पेड़ की घनी पत्तियों में कबूतरों का एक परिवार रहने आया। उनके मधुर संगीत ने वातावरण को और भी सुंदर बना दिया था – वह बूढ़े बलूत के साथ प्रेम से रहते थे। उनके संगीत से सबको यह पता चलता था कि वे यहाँ कितना सुरक्षित और सुखी हैं, यह जगह जो इतनी शांत और मनमोहक थी।
नन्हे कबूतरों के लिए तो यह जगह मरुस्थल में पानी के समान थी। वे यहाँ आराम से अपने नर्म घोंसले में दुबके, अपनी आँखें बंद कर अपनी ताकत बना सकते थे। वे यहाँ सुनहरे सपने देख सकते थे कि कैसे एक दिन वो भी अपने पंख फैला के आसमान में ऊँचे उड़ जाएँगे – बादलों के पार, एक रोमांचक सफ़र पर, वहाँ तक जहाँ धरती और समुद्र मिलते हैं, जहाँ लहरें हल्के से आकर पहाड़ों से टकराती हैं… मनमोहक!
इसी बीच, भालू के दो छोटे बच्चे घूमते-घूमते बूढ़े बलूत तक आ जाते हैं। एक पल को उनकी माँ की नज़र उनसे हटती है और दोनों दुनिया से निश्चिंत ताज़ी रसभरी को खाने की कोशिश करने में व्यस्त हो जाते हैं। विशाल बलूत चुपचाप उन्हें ऐसा करते हुए देखता रहता है।
उन रसभरियों की मधुर सुगंध धीरे-धीरे हवा में घुलने लगती है और पत्तों के बीच बहने लगती है… बूढ़ा…