बहुत समय पहले, ब्रिटेन के एक छोटे से शहर में, एक छोटी लड़की रहती थी, जिसका नाम था अदा। शहर में बहुत से बच्चे थे, और हालाँकि अदा सबसे बहुत अलग थी, उसे अपनी तरह के खेल खेलना बहुत अच्छा लगता था।
उसे सुंदर गुड़ियाओं से खेलना या और बच्चों के साथ धमाचौकड़ी मचाना पसंद नहीं था। उसे जो सबसे ज़्यादा पसंद था, वह था बाहर सैर करना और अपने दिमाग में सवाल हल करना – चाहे वह कुछ भी हो।
एक, दो, तीन, चार, पाँच… एक पेड़ पर कितनी पत्तियाँ हैं? उसके घर से विद्यालय कितने कदमों की दूरी पर है? आंटी बेट्टी के घर पर रखी टॉफियों की बर्नी में कितनी गोलियाँ भर सकती हैं? उसे यह जानने की बहुत उत्सुकता रहती कि हर चीज़ की गिनती कितनी है, वह उन नंबरों को लिखकर रखती और अपने जर्नल में जमा करती जाती। उसे दुनिया में कोई काम इतना पसंद नहीं था जितना गिनती करना।
एक दिन, अदा बहुत बीमार पड़ गई। उसकी बीमारी ने उसे इतना कमज़ोर बना दिया था कि वह चल भी नहीं पा रही थी। बड़ी मुश्किल से वह बैठने की कोशिश करती। हर दिन, वह बिस्तर में लेटी, खिड़की से बाहर आसमान में कौओं को चक्कर काटते देखती रहती।
“ओह, यह कौए कितने आज़ाद हैं, जहाँ चाहें वहाँ उड़ते फिर सकते हैं,” उसने आह भरी।
और तभी उसे एक तरकीब सूझी।
“क्या होता अगर मैं भी उड़ सकती? मेरे पैर तो मुझे बहुत दूर तक नहीं ले जा सकते, मगर अगर मेरे पंख होते तो मैं अपनी पूरी सड़क तक उड़ सकती थी। मैं स्कूल तक भी उड़ कर जा सकती थी और आंटी बेट्टी के घर तक भी। यहाँ तक की मैं लंदन तक भी उड़कर पहुँच सकती थी!”
उसने जल्दी से अपनी नोटबुक निकाली और कुछ…