अब अंधेरा होने लगा है। सूरज की आख़िरी किरणें तंबू के सामने घास पर धीरे से ठहरी हैं जैसे रात को आने का न्योता दे रही हों। अपने स्लीपिंग बैग में आराम से लिपटे, उसकी ज़िप को ठुड्डी तक खींचकर, तुम तुम अपने मन में आज हुई हर घटना को फिर से दोहराने लगते हो। क्या शानदार दिन था!
तुम्हें वह समय याद आ रहा है जब तुम और मम्मी-पापा ट्रेन से उतरे थे और अपनी साइकिलों पर चढ़े थे। हवा ने तुम्हारे बालों को बिखेरा था और तुम्हारे गाल गुलाबी कर दिए थे। तुम लोग कभी साइकिल पथ पर तो कभी जंगल की पगडंडियों पर चलते रहे, और आख़िरकार इस तालाब पर आकर रुके। यहीं तुम्हारे पापा ने समेटे हुए तंबू को निकाला। पहले तो वह तंबू इतना छोटा लग रहा था कि तुमको यक़ीन ही नहीं हुआ कि सब उसमें समा भी पाएंगे। लेकिन जब उन्होंने तंबू गाढ़ा, तो वो एक महल जैसा लगने लगा!
तुम दूर कुछ बत्तख़ों की बोलने की आवाज़ें सुन सकते हो। शायद तालाब की बत्तख़ें एक-दूसरे को शुभरात्रि कह रही हैं। मेंढक उनकी बातों का जवाब दे रहे हैं। जैसे ही हम इंसान शांत हुए, मेंढक़ों को हिम्मत आ गई और उन्होंने अपना रात का संगीत शुरू कर दिया। झींगुर भी अब इस कार्य में शामिल हो गए। सुना है, ये आवाज़ें पुरुष झींगुर मादा झिगुरों को बुलाने के लिए निकालते हैं। फिर तुम्हें वो मज़ेदार पल याद आता है जब तुम्हारी टीचर ने बताया था कि झींगुर अपने घुटनों से सुनते हैं, क्योंकि उनके कान उनके आगे वाले पैरों पर होते हैं। कमाल है!
लेकिन अब तुम इतने थक गए हो कि बस हल्की-सी मुस्कान ही दे पाते हो। तुम पापा की आवाज़ सुनते हो वो आग बुझाने के लिए उस पर पानी डाल रहे…