उस दिन समुद्र में शांति थी। केवल लहरों की आवाज़ आ रही थी जो विशाल जहाज को आगे-पीछे झुला रही थीं। जहाज के संचालक यंत्र पर झुके हुए, ऊबे हुए, कैप्टन हबब ने अपने निराश चालक दल को रस्सियां उठाते, फर्श पोंछते और सबसे महत्वपूर्ण बात, एक शब्द भी नहीं बोलते देखा। जहाज के इर्दगिर्द बीस समुद्री डाकू घूम रहे थे। फिर भी जहाज पर, कब्र जैसा सन्नाटा था।
क्या आप जानते हैं कि उन्हें बात करने का मन क्यों नहीं हो रहा था? एक हफ्ते पहले, वे दुश्मन के निजी जहाज मालिकों से हार गए थे, जिन्होंने उनके हथियार, उनकी सारी रम और उनके सामान भी जब्त कर लिए थे, जिसके कारण कैप्टन हबब के जहाज के समुद्री डाकू काफी शर्मिंदा थे। इसलिए, अब वे सब चुप थे।
"यह सन्नाटा मुझे पागल कर रहा है!" कैप्टन हबब ने कहा।
वह सन्नाटा उसे काफी परेशान कर रहा था। उसे गिलासों के आपस में टकराने की आवाज़ , जंजीरों के टकराने की आवाज़ और समुद्र की तेज सरसराहट की कमी महसूस हो रही थी।
"मैं अब उनसे कुछ भी न सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकता!" उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा।
"मैं भी नहीं!" हबब के कंधे पर बैठे मैकौ तोते ने खिलखिलाकर कहा और उसने अपने रंगीन पंख फड़फड़ाए। "मैं इस शांति को नहीं सुन सकता!"
अपने सिर पर हाथों को रखते हुए, हबब ने खुद से पूछा कि समुद्री लुटेरों को फिर से शोर मचाने के लिए कैसे राजी किया जाए। उसने उन्हें चुटकुले सुनाने की कोशिश की, यहां तक कि अगर वे फिर से शोर मचाना शुरू नहीं करते तो उन्हें जहाज से नीचे फेंकने की धमकी भी दी, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया।
“रसोइया!” तोता चिल्लाया। “रसोइया आ रहा है!”
अवश्य ही, तोते ने मोटे रसोइया को कैप्टन के डेक की…