निश्चित ही अंडा वहाँ गलती से नहीं आया था? एक शाम वह नानी इडा को फार्म की बाड़ के पीछे मिला था। वह छोटा-सा और भूरे रंग का था।
यह ज़रूर चिड़िया के घोंसले से नीचे गिर गया होगा, उन्होंने सोचा। मगर बहुत ढूँढने के बाद भी उन्हें कहीं कोई घोंसला नहीं मिला। आखिरकार उन्होंने उस अंडे को घर ले जाना तय किया और ख़ुद ही उसकी देखभाल करने की ठानी। उन्होंने उसे अपने एक ऊनी शॉल में लपेटा और सोने चली गई।
अगली सुबह जब वह उठी, तो अंडे से बच्चा निकल चुका था और एक चिड़िया जैसा जीव कमरे में घूम रहा था। वह काले रंग का था और उसके नाख़ून उसके काले-सफ़ेद पंखों के नीचे से झाँक रहे थे। उसके सिर पर एक लाल तिलक था जो उसको एक अलग रूप दे रहा था। वह अपनी लंबी, बीवर-सी पूँछ हिला रहा था और उसकी चोंच दाँतों से भरी हुई थी!
जब इडा ने उसके दाँत देखे तो वह थोड़ा डर गईं। चिड़ियाओं के दाँत नहीं होते। शायद यह कोई दानव हो? फिर उन्होंने देखा कि वह बेचारा बहुत डरा हुआ था। वह घबराकर इधर-उधर भाग रहा था और डर से चीं-चीं कर रहा था। नानी ने तुरंत चिंता करना छोड़, उस नन्हे जीव को अपने हाथों में उठा लिया। वह जानवरों की भाषा समझती थीं, क्योंकि वह ख़ुद एक ‘परी’ और ‘चुड़ैल’ के बीच का एक रूप थीं।
“हेलो, जिज्ञासु जीव। तुम क्या हो? एक चिड़िया, या कुछ और?”
“मुझे नहीं पता,” जीव ने धीरे से उत्तर दिया।
“कोई बात नहीं। मैं तुम्हें विंसेंट बुलाऊँगी।“ और इस तरह दोनों को दोस्ती हो गई।
इडा ने विंसेंट को पूरा फार्म दिखाया। जब उसका डरना बंद हो गया, तो इडा ने उसे बगीचे में अपनेआप घूमने के लिए छोड़ दिया।…