एक दिन, एक स्कूल की एक कक्षा एक पुस्तकालय जा रही थी। बच्चे बातें करते हुए चल रहे थे। हर कोई बस अपनी ही बात कर रहा था पर कोई किसी की सुन नहीं रहा था। इसलिए बच्चों का वह हल्ला मचाता हुआ झुंड धीरे-धीरे मगर निश्चित रूप से शहर के पुस्तकालय की ओर बढ़ रहा था।
उन्हें आसपास के नज़ारों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, वह इस रास्ते से पहले हज़ारों बार आ चुके था। वही पेड़ थे, और वही घास।
मगर जैसे ही वे पुस्तकालय पहुँचे, पूरा नज़ारा ही बदल गया। पुस्तकालय के दरवाज़े पर पहुँचते ही वहाँ खड़ी पुस्तकालयाध्यक्ष ने उन्हें शांत होने को कह दिया।
“शोर मत करो, बच्चों!” उनकी टीचर ने कहा और होठों पर उँगली रख कर शांत रहने का इशारा किया।
और बच्चों को न चाहते हुए भी चुप हो जाना पड़ा। सबसे पहले पुस्तकालयाध्यक्ष ने उन्हें बताया कि पुस्तकालय में काम कैसे होता है। उसके बाद बच्चे अपने आप से जाकर किताबें देख सकेंगे। अगर उन्हें कोई किताब पसंदआती है, तो वे उसे कुछ समय के लिए अपने घर ले जाकर पढ़ सकते हैं। सब यह सुनकर बहुत उत्साहित हो गए – सिवाय नन्हे जो के।
“तुम्हें किताबें नहीं पसंद, है ना? पुस्तकालयाध्यक्ष महिला ने उस छोटे लड़के को परेशान देख कर उससे पूछा।
“मुझे अक्षर पसंद नहीं हैं,” उसने धीरे से सिर झुकाकर कहा।
स्कूल में भी वह उनसे भागा करता था। उसके लिए अक्षर हमेशा उसकी आँखों के सामने नाचते और टेढ़े-मेढ़े होते रहते। वह कितनी भी कोशिश करे वह उन्हें पकड़कर उन्हें सही तरह से नहीं पढ़ पाता था। उसकी क्लास के बाक़ी बच्चे अक्सर इस बात के लिए उसका मज़ाक़ उड़ाते थे।
“तो क्यों ना हम चल कर तस्वीरों वाली किताबें देखें। शायद तुम्हें वो पसंद आएं।“पुस्तकालयाध्यक्ष ने जो का हाथ पकड़ा और उसे…