एक बार एक संकीर्ण घाटी में एक छोटा सा तालाब था। वादी के सभी जानवर वहाँ पानी पीने और तैरने जाते थे। यह तालाब बहुत शांत और सौम्य था। पर फिर एक दिन, जब जानवर वहाँ पानी में खेल रहे थे, एक ख़रगोश ने महसूस किया कि तालाब का पानी पहले से कम था।
“क्या जो मेरी आँखें देख रही हैं वह सच है?” उसने अपने साथियों से कहा। “या कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा? यह तालाब पहले से छोटा लग रहा है मुझे।“ यह निश्चित करने के लिए कि वह कोई सपना ना देख रहा हो उसने पानी में डुबकी लगाई, ताकि अगर यह सपना हो तो वह उससे जाग सके।
“मुझे भी ऐसा लगता है कि तुम सच कह रहे हो,” समझदार बूढ़े कछुए ने कहा, जो तालाब के किनारे बैठा हुआ था। “मगर ऐसा होना हैरानी की बात नहीं है क्योंकि कई हफ्तों से बारिश नहीं हुई है। लगता है यहाँ सूखा पड़ रहा है। यह मौसम जितना लंबा चलेगा, तालाब का पानी और कम होता जाएगा।“
“ऐसा नहीं हो सकता!” ख़रगोश चिल्लाया, और तैरकर कछुए के पास आ गया। “अगर तालाब सूख गया तो हम कहाँ खेलेंगे? और हम क्या पियेंगे?”
“दोस्त, मुझे डर है मौसम किसी की नहीं सुनते। गर्मी का मौसम आ रहा है। जल्द ही सूरज की तेज़ गर्मी में हमारा तालाब पूरी तरह से सूख जाएगा।“ इस ख़बर से बाकी जानवर भी चिंतित हो गए और समझदार कछुए की बात सुनने उसके पासपास इकट्ठे हो गए। उसने आगे कहा, “देखो, जब गर्मियाँ आती है तो बहुत छोटी, इतनी की दिखाई ना दे, पानी की बूँदें तालाब से उठकर आसमान की तरफ जाने लगती हैं। वो ऊपर जाकर गायब हो जाती हैं और भाप के बादल में बदल जाती हैं। और मुझे तुम्हें यह बताते हुए दुख हो रहा…