एक छोटा सा परिवार गाँव के किनारे एक झोंपड़ी में सादगी से अपना जीवन बिता रहा था। जैक के पिता लकड़हारे थे, लेकिन एक दिन एक पेड़ उनके ऊपर गिर गया जिससे उनकी मृत्यु हो गई। तभी से उनकी पत्नी, घर और अपने नन्हे से बेटे की देखभाल कर रही थी।
जैक के पिता की मृत्यु के बाद से घर पर गरीबी के बादल छा गए। जैक और उसकी माँ के पास कई बार खाने के लिए कुछ भी नहीं होता था। सिर्फ मिल्की, उनकी गाय, की वजह से वे इस कठिन समय से गुज़र पा रहे थे — जो दूध वह देती कभी-कभी वही उनका एकमात्र भोजन होता।
सर्दियाँ तेज़ी से नज़दीक आ रही थीं और परिवार के पास एक भी पैसा नहीं बचा था। जैक के कपड़े इतने पुराने और फटे हुए थे जो पतले से कपड़ों के चिथड़ों जैसे लगते थे। पर वह गर्म कोट और बिना छेद वाले जूतों का सिर्फ सपना ही देख सकता था।
एक दिन, हताश होकर जैक की माँ ने उससे कहा: “अब सहन नहीं हो रहा। हमें गाय को बेचना होगा! सुबह उसे बाज़ार ले जाओ और जितने ज़्यादा से ज़्यादा पैसे मिलें, ले आना। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम सर्दियाँ जीवित काट सकेंगे।”
अगले ही दिन, जैक ने गाय को तैयार किया और उसकी माँ ने आख़िरी बाल्टी उसका दूध निकाला और आँसुओं के साथ अपनी प्यारी मिल्की को आख़री अलविदा कहा। जब जैक ने मिल्की की गर्दन में बंधी घंटी को चमकाकर साफ़ कर लिया, फिर उसने लगाम थामी और गाय को बाज़ार की ओर ले जाने लगा। वह दिन बहुत गर्म था और रास्ता लंबा और धूल भरा।
“कौन जाने कोई हमारी मिल्की को खरीदेगा भी या नहीं,” जैक ख़ुद से बुदबुदाया।
वे ज़्यादा दूर नहीं चले थे कि रास्ते में उन्हें एक अजीब…