शहर हमेशा की तरह जीवन की भागदौड़ से भरा हुआ था। सड़कों पर हज़ारों गाड़ियाँ थीं, कई बसें और ट्रामें थीं और बहुत सारे चिड़चिड़े और परेशान लोग भी। हर दिशा से गुस्से भरी आवाज़ें, हॉर्न बजती कारें और ब्रेक की तीखी चीखें सुनाई दे रही थीं।
हर कोई जल्दी में था, हर कोई किसी न किसी चीज़ के पीछे भाग रहा था, और ऐसा लगता था कि किसी को ये समझ ही नहीं आ रहा कि जो लोग उनके रास्ते में आ रहे हैं, उनके पास भी नाराज़ होने की उतनी ही वजह है। वे भी उतनी ही जल्दी में हैं जितने और लोग। यह सब एक बहुत बड़ी उलझन थी।
एक आदमी अपनी कार की खिड़की से झुका हुआ था और दूसरे आदमी को मुक्का दिखा रहा था। वो दूसरा आदमी सड़क के बीच खड़ा हुआ था और अपना ब्रीफ़केस सिर के ऊपर इस तरह इधर-उधर कर रहा था मानो वो उसे लापरवाह ड्राइवर के पीछे फेंकने वाला हो। बाकी सभी लेन की कारें भी हॉर्न बजाने लग गईं, उनके ड्राइवर जल्दबाज़ी में पागल हो चुके थे और एक-दूसरे पर अधीरता से चिल्ला रहे थे। सभी अलग-अलग आवाज़ें मिलकर एक बड़ा, कान फाड़ने वाली शोर बन गई थीं। इस पूरे शोर और गुस्से भरे माहौल में कोई भी किसी की बात समझ नहीं पा रहा था।
ट्रैफिक जाम के बीचोंबीच एक बस शांतिपूर्वक खड़ी थी। उसे पता था कि इस शोरगुल में और जोड़ने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। उसने पहले भी कई बार कोशिश की थी, लेकिन कभी कोई फर्क नहीं पड़ा था।
बस के अंदर बैठे लोग ज़ोर-ज़ोर से ड्राइवर पर चिल्ला रहे थे, ज़ाहिर है उन्हें भी जल्दी थी! जैसे सबको थी।
"चिंता मत करो, मेरे दोस्त, इससे भी बुरा देखा है हमने। हम इस पागलपन को अपने ऊपर हावी नहीं…