जब तीसरी कक्षा का छात्र माइकी जागा, तो वह खुद को और जो पाजामा उसने पहना हुआ था, उसे घसीटता हुआ किचन तक गया और एक जम्हाई ली। उसका बड़ा भाई पहले से ही बहुत देर से जागा हुआ था। उसके कमरे से आ रही आवाज से लग रहा था कि वह वायलिन बजा रहा है। माइकी ने अपना सिर पकड़ लिया और अपनी उंगलियों से अपने कान बंद कर लिए, काश कि वह फिर से जाकर सो पाता।
“जल्दी करो। अपनी सार्डिन मछली खाओ, नहीं तो तुम्हें स्कूल के लिए देर हो जाएगी,” उसकी मां ने वहां से गुजरते हुए कहा।
मछली के डिब्बे को देखकर माइकी ने अपनी नाक सिकोड़ ली। “सार्डिन? ओह... इसको खाने के बजाय और जो कहो मैं खा लूंगा!”
अचानक, डिब्बे के अंदर कुछ हलचल हुई। एक साबुत गोल्डन सार्डिन ने उसे आंख मारी थी! माइकी एक फुसफुसाहट सुन पा रहा था। “जैसा तुम चाहो!” एक मादा मछली की आवाज ने कहा।
डिब्बाबंद सॉसेज, मटर, मक्का, कीनू जैम, शहद और मक्खन, अचानक न जाने कहां से उसके सामने टेबल पर प्रकट हो गए। लेकिन वे सभी छोटे-छोटे डिब्बों में थे। माइकी ने अविश्वास में भोजन के ढेर को देखा, फिर दुबारा मछली के डिब्बे को देखा। उसे लगा कि अवश्य ही वह कोई सपना देख रहा था।
लेकिन यह कोई सपना नहीं था। सामने दिख रही गोल्डन सार्डिन फिर से बोली। "मैं एक सुनहरी मछली हुआ करती थी। अब मैं सिर्फ एक सुनहरी डिब्बाबंद सार्डिन हूं, लेकिन अगर तुम मुझे नहीं खाओगे तो मैं अभी भी तुम्हारी एक या दो इच्छा पूरी कर सकती हूं!"
"मैं तुम्हें बिल्कुल नहीं खाऊंगा," माइकी ने जल्दी से कहा। "मुझे नाश्ते में सार्डिन खाना बिल्कुल पसंद नहीं है।" "यह तो बहुत अच्छी बात है," सार्डिन ने कहा। "तो मैं तुम्हारी तीन इच्छाएं…