“पापा, क्या आप मेरी नई सहपाठिन से मिले?” स्कूल के फाटक पर पहुंचते ही मेग ने पूछा। “उसकी आँखें इतनी अजीब सी हैं!” अपनी हल्की नीली आँखों को बड़ा कर, उसने अपने पिता से पूछा।
“अजीब सी आँखें? क्या मतलब, मेग ?’” उसके पापा ने पूछा और उसका बैग उसके कन्धे से उतारा ताकि उसका बोझ कम कर सकें।
“वो ना, कुछ... अलग हैं। मेरे दोस्त टॉमी ने कहा... एक मिनट... क्या कहा था... तिरछी?
“समझ गया,” उसके पापा ने मुस्कुराते हुए कहा। “इसका मतलब है उसकी बादामी आँखें हैं!”
“बादामी आँखें?” मेग कुछ समझ नहीं पाई। मतलब, वह जानती थी बादाम क्या होते हैं: वो मीठा भूरे रंग का मावा जो उसकी मम्मी केक बनाते हुए उसमें डालती हैं। और जो वह कभी कभी फलों के साथ खाती थी।
“अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें बादामी आँखों के बारे में और बता सकता हूँ,” उसके पापा ने सुझाया।
सुहावना मौसम था और उन्हें घर पहुँचने की कोई जल्दी भी नहीं थी, इसलिए वे दोनों पार्क में लगी बेंच पर जाकर बैठ गए।
“बहुत समय पहले, लोग खुद चुन सकते थे कि वो कैसा दिखना चाहते हैं। वो अपने बाल, आँखें, नाक... समझाने के लिए कहूँ तो अगर तुम अपने जन्मदिन के लिए नए कान माँगतीं, तो तुम दुकान पर जाकर एक नया जोड़ा ले सकती थीं।
एक बार लिन नाम की एक लड़की थी, जिसे बादाम बेहद पसंद थे। उसके माता-पिता का बादामों का बहुत बड़ा बाग था। दूर-दूर तक उनके जैसे नाज़ुक बादाम कोई नहीं उगा सकता था: सुनहरे भूरे और स्वादिष्ट। और तभी लिन को लगा कि उसे बिल्कुल वैसे ही बादामी रंग की आँखें चाहिएं। और इतना ही नहीं, जब दुकानदार ने उसे अपनी पसंदीदा आँखों का चित्र बनाने को कहा, तो उसने अपने प्यारे बादाम के ढाँचे को बना के दे…