शुरुआत में कुछ नहीं था, दूर-दूर तक केवल खालीपन था। सोचो ज़रा: ना धरती, ना पहाड़, ना पेड़, ना नदियाँ, ना जानवर, यहाँ तक कि आसमान भी नहीं!
ईश्वर ने इस सूनेपन को देखा और कहा:
“यहाँ रोशनी रहे!” और अचानक वह ख़ालीपन एक आलीशान रोशनी से भर गया।
ईश्वर ने तय किया कि इस रोशनी को ‘दिन’ कहा जाएगा और अंधकार को ‘रात’ कहेंगे। और इस तरह दुनिया का पहला दिन बना।
दूसरे दिन, ईश्वर ने कुछ और रचना करने की सोची, तो उन्होंने पानी बना दिया और पानी को आकाश से अलग कर दिया।
तीसरे दिन ईश्वर ने कहा: “सारा पानी एक जगह इकट्ठा हो जाए ताकि सूखी धरती बन सके।“ और जानते हो क्या हुआ? दुनिया का सारा पानी एक महासमुद्र में इकट्ठा हो गया, और उसके आसपास सूखी धरती नज़र आने लगी। धरती पर, ईश्वर ने घास, पेड़, फूल और फल बनाए। सब कुछ हराभरा और जीवन से भरपूर नज़र आने लगा।
चौथे दिन, दुनिया को और भी सुंदर और पूर्ण बनाने के लिए, ईश्वर ने सूर्य की रचना की, और साथ ही चाँद और तारे भी बना दिए। उन्होंने सूर्य को दिन के समय चमकने का आदेश दिया, और चाँद-तारों को रात में अपनी रोशनी बिखेरने के लिए कहा।
पाँचवे दिन, ईश्वर ने हज़ारों तरह की अलग-अलग मछलियाँ समुद्र में बना दिन और आकाश में उड़ने के लिए विभिन्न पक्षी, जिन्होंने दुनिया में अपने मधुर संगीत से रौनक ला दी।
फिर आया छटा दिन, जब ईश्वर ने सब तरह के जानवरों की रचना की। घास चरते हुए हिरण और भेड़-बकरियाँ, जंगल में विचरण करते शेर, पेड़ों पर चढ़े बंदर, और उनकी जड़ों में घुसकर रहते चूहे। पूरी पृथ्वी उनकी आवाज़ों से गूंजने लगी।
मगर इतनी खूबसूरती के बाद भी, कहीं कुछ कमी महसूस हो रही थी।
कुछ सोचकर ईश्वर…