पुरानी अलार्म घड़ी की आवाज़ पूरे घर में गूंज गई: “रिचर्ड, रिचर्ड, उठने का समय हो गया है!”
ख़रगोश अभी भी अपनी गर्म रज़ाई में लिपटा हुआ था। मगर जैसे ही अलार्म घड़ी की आवाज़ उसके लंबे कानों तक पहुँची, वह कूदकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया और सही तरीके से अंगड़ाई ली। उसने अपने सभी लंबे दाँतों को अच्छी तरह ब्रश किया और अपने लिए एक अच्छा सा नाश्ता बनाने रसोई की ओर चल दिया।
मगर जब उसने पेंट्री का दरवाज़ा खोला, तो वह लगभग खाली था। वहाँ केवल थोड़े से प्याज़, लहसुन की कुछ कलियाँ और मुट्ठीभर आलू थे। सूखी घास वह पिछली सुबह ही ख़त्म कर चुका था, सारी जड़ी-बूटियाँ उसने दिन के खाने में खा ली थीं और पिछली रात के खाने में ब्रेड ख़त्म कर ली थी।
“अब मैं क्या करूँ?” अपने पेट से आती आवाज़ों को सुनते हुए रिचर्ड ने कहा। पर तभी उसे कुछ याद आया! उसने अपनी बाँस की टोकरी उठाई और घर से बाहर दौड़ गया।
बाहर बहुत सुहावना मौसम था! जंगल की ताज़ा हवा महक रही थी और सूरज तेज़ चमक रहा था। रिचर्ड ने अपने घर का दरवाज़ा बंद किया और लोमड़ी फ्रेया की बिल की ओर चल पड़ा। खरगोश ने लकड़ी के गोल दरवाज़े पर दस्तक दी। दरवाज़ा खुला और फ्रेया उसके पीछे से झांकती हुई बाहर आई।
"सुप्रभात, रिचर्ड! ये टोकरी लेकर तुम कहाँ जा रहे हो?" उसने जिज्ञासा से पूछा।
"मेरे पास खाने का सामान लगभग ख़त्म हो गया है, तो मैंने सोचा कुछ ब्लूबेरी, रसभरी और स्ट्रॉबेरी तोड़ लाऊं। क्या तुम भी मेरे साथ चलोगी?"
"वाह, ये तो मैं भी खाना चाहूंगी!" फ्रेया अपनी बिल में वापस घुसी और थोड़ी खटर-पटर के बाद बाहर निकली। उसने भी अपने पंजे में एक टोकरी पकड़ी हुई थी, बिलकुल वैसी ही जैसी रिचर्ड के पास…