शुक्रवार की दोपहर थी और माया बैंड की क्लास से घर लौटी ही थी। उसने सामने का दरवाजा झटके से खोल दिया, अपने कमरे में भागी और अपना स्कूल बैग डेस्क के नीचे छिपा दिया। और फिर, लगभग बहुत श्रद्धापूर्वक - जैसे कि वह कोई पवित्र वस्तु हो - उसने अपना सैक्सोफोन केस कोने में, म्यूजिक स्टैंड के ठीक बगल में खड़ा कर दिया। हालांकि माया को दुनिया की किसी भी चीज से ज्यादा संगीत पसंद था, लेकिन वह कभी-कभी शनिवार की रिहर्सल को छोड़ देने की भरपूर कोशिश करती थी।
कोई बात नहीं। आज की रिहर्सल तो हो गई थी। उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और उसमें कुछ पाजामे, अंडरवियर, एक टी-शर्ट, एक टूथब्रश और एक किताब डाल दी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह कुछ भी भूली नहीं है, कमरे में एक आखिरी नजर डालते हुए माया दरवाजे से बाहर निकल गई। वह अपनी दादी के घर सप्ताहांत बिताने जा रही थी!
माया अब बड़ी हो गई थी, इसलिए वह अकेले वहां जा सकती थी। वह बस स्टॉप पर पहुंची जहां बस पहले से ही उसे ले जाने के लिए उसके इंतजार में खड़ी थी। हमेशा की तरह, जब बस पहुंची तो उसकी दादी गांव के चौराहे पर खड़ीं बेसब्री से उसके आने की प्रतीक्षा कर रही थीं।
“हैलो माया, मेरी प्यारी बच्ची,” उन्होंने अपनी पोती को देख खुशी से मुस्कुराते और गले लगाकर स्वागत करते हुए कहा। चलो घर चलते हैं। मेरे पास तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है।”
माया की आंखें उत्सुकता से चमक उठीं। क्या हो सकता है? उसने कई हफ्ते पहले अपना जन्मदिन मनाया था, और उसका ‘नाम दिवस’ (नेम डे-वह दिन जिसे अपने नाम के साथ जुड़े किसी संत की याद में मनाया जाता है) अभी महीनों दूर था। जहां तक क्रिसमस की बात है, तो वह तो…